साँझ
कुछ आवाजें हैं मेरे मन की, शब्दों कि शक्ल में - शायद आप तक भी पहुंचें!
Tuesday, July 5, 2011
मेरे सिरहाने तेरा ख़त
मेरे सिरहाने तेरा ख़त रक्खा हुआ है अब तक,
चाँद भी आसमाँ पे ठहरा हुआ है अब तक.
तू मेरे पास नहीं फिर क्यूँ गुमाँ होता है ये,
मेरे शाने पे तेरा सर रक्खा हुआ है अब तक.
यूँ तो कब का निकल जाना था दम मेरा,
तुझसे मिलने की चाह में अटका हुआ है अब तक.
चोट तुझको भी लगी, दिल तेरा भी जला है शायद,
देखो चेहरे पे धुआं ठहरा हुआ है अब तक.
दवा हर एक आजमाई शेख जी लेकिन,
ज़ख्म तो रोज़ ही गहरा हुआ है अब तक.
--------उमेश---------------------
Saturday, January 29, 2011
कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं-------
Monday, November 22, 2010
चलो लौट चलें!
ढलने लगी है शाम चलो लौट चलें,
यादों का हाथ थाम चलो लौट चलें.
खुली खिड़की से झांकती वो दो आँखें,
उन्ही आँखों के नाम चलो लौट चलें.
घर की वीरानियाँ तन्हाई में सिसकती हैं,
छोडो ये सारे काम चलो लौट चलें.
मयकदा तेरा साथ देगा भला कब तलक,
खली पड़े हैं जाम चलो लौट चलें.
तेरे ज़ज्बात यहाँ कोई नहीं समझेगा,
हर चीज़ का है दाम चलो लौट चलें.
Sunday, September 5, 2010
मधुवन नहीं रहा!
बढ़ता गया मकाँ लेकिन आँगन नहीं रहा,
पल भर जो दे सुकूँ वो दामन नहीं रहा.
दिल की ज़मीन अब तक सूखी ही पड़ी है,
लगता है अबकी रुत में सावन नहीं रहा.
इतने फरेब देखे दुनिया की राह में,
अपना कहे किसी को वो मन नहीं रहा.
हर शख्स ने चेहरे पे मुखौटे लगा लिए,
जो सच बता सके वो दर्पन नहीं रहा.
मायूस होके महफ़िल से लौटे हैं शेख जी,
हसरत है लेकिन क्या करें जोबन नहीं रहा.
इस तरह आदमी ने अपनी बढाई नस्ल,
गोपी हैं, ग्वाल हैं लेकिन मधुवन नहीं रहा.
----------------उमेश------------------------
Thursday, July 29, 2010
याद आ रही है!!!
बात पुरानी याद आ रही है,
फिर वो कहानी याद आ रही है.
हँसी के ठहाके, यारों की महफ़िल,
वो शाम सुहानी याद आ रही है.
'नज़रें चुराते हैं सब मुफलिसी में',
माँ की ज़ुबानी याद आ रही है.
कान्हा की खातिर दर-दर भटकती,
राधा दिवानी याद आ रही है.
दादी के किस्सों में अक्सर बिछड़ती,
वो राजा की रानी याद आ रही है.
चलते समय उसका कहना "न जाओ",
वो प्रेम-निशानी याद आ रही है.
Saturday, July 17, 2010
मुझे तुम याद आते हो!
सूरज की मद्धम-२ किरने जब आती हैं जमीन पर,
धीरे से मुस्कुराती हैं तैरती हुयी कमल कलियाँ,
घोसले में बैठे चिडिया के बच्चे कुनमुनाते हैं,
भवरें मंडराते हैं, मीठा-२ सा कुछ गुनगुनाते हैं,
क्यूँ? है न यह सब बहुत प्यारा, बहुत कोमल-
खुशियों से नाच रही हैं तितलियाँ चंचल,
लेकिन मेरा मन उदास, पता नहीं कहाँ खोया है-
बहुत टटोलने पर कहता है उसे तुम याद आते हो!
उस वक्त बह रही होती है खुश्बू भरी मंद बयार,
ओस की बूंदे चमकती हैं चाँदी की तरह पत्तों पर,
नदी के किनारे चिड़िया के झुंड आ-आ कर बैठते हैं,
दूर कहीं किसी मंदिर में शंख और घंटे बजते हैं,
मेरा मन फिर भी खाली है, सूना है, तन्हा है-
पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है, उसे तुम याद आते हो!
देखो उस फूल ने उस फूल से कुछ तो कहा है,
वो डाली कुछ हिली है वो फूल भी हँसा है,
शायद वे बातें करते हैं, मेरी बेचारगी पर-
मेरी दीवानगी पर- मेरी आवारगी पर,
दूर तक फैली है हरियाली, छिटकी है धुप दुपहरी की,
उस मोटे बरगद की छांव में बैठा मृग-युगल कितना प्रफ्फुलित है,
एक मेरे ही मन से ख़ुशी रूठी है, हंसी कहीं दूर जा बैठी है,
मै सोचता हूँ कहीं ऐसा तो नहीं, उसे तुम यद् आते हो!
ढल रही है दुपहरी,
सूरज की तिरछी किरणे खींच रही हैं लम्बे-२ चित्र,
धूल की धुंध छंटी है,
हवाओं की तपिश भी मिटी है,
पेडों के झुरमुट से निकली है मोरनी अपने बच्चों के साथ,
जामुन के पेड़ पर वो बुलबुल के झुंड तो देखो कैसे चहकते हैं,
सब खुश हैं, मस्त हैं, पूरा महसूस करते हैं,
लेकिन कब छंटेंगे उदासी के बादल मेरे मन के आँगन से,
कब वो छोडेगा अपनी जिद, अपनी रट-
कि उसे तुम याद आते हो!
Thursday, July 15, 2010
रब का भरोसा मत छोड़ो..
रब का भरोसा मत छोड़ो--!,
मेरे दिल का दर्द जरा कम होने दो,
जाना लेकिन ठहरो सवेरा होने दो,
दीवारों को इतना ऊँचा मत करिए,
कुछ तो उजाला घर-आँगन में होने दो.
अश्कों से भी गम कुछ हल्का होता है,
आज मुझे मत रोको खुलके रोने दो.
इतनी जल्दी रब का भरोसा ना छोडो,
सब्र करो जो होता है वो होने दो.
इससे पहले थम जाये सांसों का सफ़र,
दिल की ज़मीं पर आज मोहब्बत बोने दो.
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