ढलने लगी है शाम चलो लौट चलें,
यादों का हाथ थाम चलो लौट चलें.
खुली खिड़की से झांकती वो दो आँखें,
उन्ही आँखों के नाम चलो लौट चलें.
घर की वीरानियाँ तन्हाई में सिसकती हैं,
छोडो ये सारे काम चलो लौट चलें.
मयकदा तेरा साथ देगा भला कब तलक,
खली पड़े हैं जाम चलो लौट चलें.
तेरे ज़ज्बात यहाँ कोई नहीं समझेगा,
हर चीज़ का है दाम चलो लौट चलें.