Tuesday, July 5, 2011

मेरे सिरहाने तेरा ख़त


मेरे सिरहाने तेरा ख़त रक्खा हुआ है अब तक,
चाँद भी आसमाँ पे ठहरा हुआ है अब तक.

तू मेरे पास नहीं फिर क्यूँ गुमाँ होता है ये,
मेरे शाने पे तेरा सर रक्खा हुआ है अब तक.

यूँ तो कब का निकल जाना था दम मेरा,
तुझसे मिलने की चाह में अटका हुआ है अब तक.

चोट तुझको भी लगी, दिल तेरा भी जला है शायद,
देखो चेहरे पे धुआं ठहरा हुआ है अब तक.

दवा हर एक आजमाई शेख जी लेकिन,
ज़ख्म तो रोज़ ही गहरा हुआ है अब तक.

--------उमेश---------------------

Saturday, January 29, 2011

कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं-------


कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं,
आँखों में इनकी देखिये बस प्यार-प्यार है.

माँ-बापू खेत को गए, दादी भी सो गयी,
चकल्लस करें जरा कि शमाँ खुशगवार है.

दुनियावी भीड़ में कहीं खोये न बचपना,
बस, उसको बचाना यही इनकी गुहार है.

मक्का न मदीना, काशी न अयोध्या,
चेहरे पे इनके दो जहाँ की हर मजार है.