Saturday, July 17, 2010

मुझे तुम याद आते हो!


सूरज की मद्धम-२ किरने जब आती हैं जमीन पर,
धीरे से मुस्कुराती हैं तैरती हुयी कमल कलियाँ,
घोसले में बैठे चिडिया के बच्चे कुनमुनाते हैं,
भवरें मंडराते हैं, मीठा-२ सा कुछ गुनगुनाते हैं,
क्यूँ? है न यह सब बहुत प्यारा, बहुत कोमल-
खुशियों से नाच रही हैं तितलियाँ चंचल,
लेकिन मेरा मन उदास, पता नहीं कहाँ खोया है-
बहुत टटोलने पर कहता है उसे तुम याद आते हो!

उस वक्त बह रही होती है खुश्बू भरी मंद बयार,
ओस की बूंदे चमकती हैं चाँदी की तरह पत्तों पर,
नदी के किनारे चिड़िया के झुंड आ-आ कर बैठते हैं,
दूर कहीं किसी मंदिर में शंख और घंटे बजते हैं,
मेरा मन फिर भी खाली है, सूना है, तन्हा है-
पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है, उसे तुम याद आते हो!

देखो उस फूल ने उस फूल से कुछ तो कहा है,
वो डाली कुछ हिली है वो फूल भी हँसा है,
शायद वे बातें करते हैं, मेरी बेचारगी पर-
मेरी दीवानगी पर- मेरी आवारगी पर,
दूर तक फैली है हरियाली, छिटकी है धुप दुपहरी की,
उस मोटे बरगद की छांव में बैठा मृग-युगल कितना प्रफ्फुलित है,
एक मेरे ही मन से ख़ुशी रूठी है, हंसी कहीं दूर जा बैठी है,
मै सोचता हूँ कहीं ऐसा तो नहीं, उसे तुम यद् आते हो!


ढल रही है दुपहरी,
सूरज की तिरछी किरणे खींच रही हैं लम्बे-२ चित्र,
धूल की धुंध छंटी है,
हवाओं की तपिश भी मिटी है,
पेडों के झुरमुट से निकली है मोरनी अपने बच्चों के साथ,
जामुन के पेड़ पर वो बुलबुल के झुंड तो देखो कैसे चहकते हैं,
सब खुश हैं, मस्त हैं, पूरा महसूस करते हैं,
लेकिन कब छंटेंगे उदासी के बादल मेरे मन के आँगन से,
कब वो छोडेगा अपनी जिद, अपनी रट-
कि उसे तुम याद आते हो!

No comments:

Post a Comment