Thursday, July 29, 2010

याद आ रही है!!!


बात पुरानी याद आ रही है,
फिर वो कहानी याद आ रही है.

हँसी के ठहाके, यारों की महफ़िल,
वो शाम सुहानी याद आ रही है.

'नज़रें चुराते हैं सब मुफलिसी में',
माँ की ज़ुबानी याद आ रही है.

कान्हा की खातिर दर-दर भटकती,
राधा दिवानी याद आ रही है.

दादी के किस्सों में अक्सर बिछड़ती,
वो राजा की रानी याद आ रही है.

चलते समय उसका कहना "न जाओ",
वो प्रेम-निशानी याद आ रही है.

4 comments:

  1. उमेश जी, बहुत ही बढ़िया... क्या लिखूं इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर इसके सिवा...
    "टीप लिखने मैं बैठा हूँ मुझको
    तेरे ग़ज़ल की रवानी याद आ रही है"
    बधाई.

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  2. दादी के किस्सों में अक्सर बिछड़ती,
    वो राजा की रानी याद आ रही है.

    bhut achcha likha hai.

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