कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं,
आँखों में इनकी देखिये बस प्यार-प्यार है.
माँ-बापू खेत को गए, दादी भी सो गयी,
चकल्लस करें जरा कि शमाँ खुशगवार है.
दुनियावी भीड़ में कहीं खोये न बचपना,
बस, उसको बचाना यही इनकी गुहार है.
मक्का न मदीना, काशी न अयोध्या,
चेहरे पे इनके दो जहाँ की हर मजार है.
सुन्दर... उमेश भाई... आभार.
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