Saturday, January 29, 2011

कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं-------


कुछ भी न हो मगर सपने हज़ार हैं,
आँखों में इनकी देखिये बस प्यार-प्यार है.

माँ-बापू खेत को गए, दादी भी सो गयी,
चकल्लस करें जरा कि शमाँ खुशगवार है.

दुनियावी भीड़ में कहीं खोये न बचपना,
बस, उसको बचाना यही इनकी गुहार है.

मक्का न मदीना, काशी न अयोध्या,
चेहरे पे इनके दो जहाँ की हर मजार है.

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